आधुनिक जीवनशैली विकारों के समाधान में श्रीमद्भगवद्गीता और हठयोग के सिद्धान्तों की तुलनात्मक उपयोगिता
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Abstract
आधुनिक समय की भौतिकतावादी दौड़, तकनीकी निर्भरता, अनियमित दिनचर्या, असंतुलित भोजन, मानसिक तनाव और सामाजिक अलगाव ने मनुष्य को अनेक जीवनशैली-जनित विकारों से घेर लिया है। मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, चिंता, अवसाद, और सामाजिक व आध्यात्मिक शून्यता वर्तमान जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बनते जा रहे हैं। ऐसे युग में भारत की प्राचीन आध्यात्मिक-वैज्ञानिक परंपराएँ—विशेषकर श्रीमद्भगवद्गीता और हठयोग—मानव जीवन को संतुलित, संयमित एवं स्वास्थ्यसम्पन्न बनाने हेतु अद्वितीय दिशा प्रदान करती हैं। इस शोध-पत्र का मुख्य उद्देश्य आधुनिक जीवनशैली विकारों की प्रकृति, उनके मनोदैहिक कारणों तथा उनके समाधान में श्रीमद्भगवद्गीता एवं हठयोग के सिद्धान्तों की तुलनात्मक उपयोगिता का विश्लेषण प्रस्तुत करना है। गीता का कर्मयोग, ध्यानयोग, इन्द्रियनिग्रह, त्रिगुण-विज्ञान, तथा समत्वयोग व्यक्ति को मानसिक-भावनात्मक संतुलन, निर्णयक्षमता और धैर्य प्रदान करते हैं। दूसरी ओर हठयोग का आसन, प्राणायाम, शोधन, मिताहार, निद्रा-विनियमन, ब्रह्मचर्य, तथा यम-नियम व्यक्ति को विशुद्ध शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य और जीवनानुशासन प्रदान करते हैं। यह शोध स्पष्ट करता है कि जहाँ गीता मानसिक-आध्यात्मिक दिशा प्रदान करती है, वहाँ हठयोग दैनिक व्यवहार, दिनचर्या और शारीरिक अनुशासन का वैज्ञानिक ढाँचा प्रस्तुत करता है। दोनों का संयोग आधुनिक जीवनशैली के समग्र उपचार का आधार बनता है। अध्ययन से यह निष्कर्ष उभरता है कि आइ.टी.-आधारित जीवन, अत्यधिक तनाव और अव्यवस्थित भोजन-पद्धति वाले आधुनिक समाज में गीता एवं हठयोग के सिद्धान्त न केवल उपचारात्मक हैं, बल्कि रोकथामकारी (Preventive) भी हैं। इसलिए आधुनिक जीवनशैली रोगों के टिकाऊ समाधान हेतु इन सिद्धान्तों का अनुपालन अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है।
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