योग: जीवन के सम्यक् संतुलन की साधना
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इस भौतिकवादी युग में प्रायः प्रत्येक जन मानसिक तनाव से ग्रस्त दिखाई देता है। यह तनाव आज के समाज में उत्पन्न हो रही अराजकता, दरिद्रता, ईष्र्या, वैमनस्य ,असहिष्णुता, आर्थिक विषमता, रोग, मानसिक कष्ट एवं नैतिक पतन इत्यादि की उपज है। यदि मनुष्य इन समस्त विषमताओ से मुक्त होकर स्वस्थ, शांत एवं आनंदपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहता है तो उसका केवल एक ही निदान है, वह है योग। योग एक समग्र अभ्यास है जो व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने में मदद करता है। प्रत्येक आयु एवं शारीरिक सामथ्र्य वाले व्यक्ति के द्वारा यह योग पद्धति अपनाई जा सकती हैं।
प्राचीन वैदिक परंपरा की अनुपम देन योग है, जिसे हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा समग्र मानवता के कल्याण हेतु विकसित किया गया। यह योग वर्तमान समय में ऐसी अमूल्य औषधि है जिसका प्रयोग कर प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ मस्तिष्क व स्वस्थ शरीर को प्राप्त कर निरोगी बन सकता है। योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करती है। योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, वरन् आत्मा की ओर यात्रा है। यह भारत की अमूल्य और सार्वकालिक देन है। योग भारत की एक ऐसी अमूल्य धरोहर है जो आज के विचलित, संदिग्ध एवं तनाव ग्रस्त वातावरण में संजीवनी के समान है। यह न केवल रोगों से मुक्ति का साधन है, अपितु एक आत्मिक यात्रा है -स्व से परमात्मा तक की।
विभाजन और विविधताओं का जो प्रपंच आज वर्तमान समय में दृष्टिगोचर होता है उसका निराकरण भी केवल योग के माध्यम से ही संभव है। योग समरसता का सूत्र है जो हमें महसूस कराता है कि हमारे भीतर एवं बाहर व्यापक एकता का प्रवाह निरंतर प्रवाहित हो रहा है। जब हम इस अदृश्य एकता को अनुभव करते हैं तो भिन्नताओं का बोध स्वतः ही लुप्त हो जाता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आत्मशांति एवं सार्वभौमिक एकता का केवल एक ही मार्ग है, योग। इसकी आत्मा में समर्पण, संयम एवं साधना समाहित है जो किसी भी व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण कर देती है।
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