भारत में धर्मनिरपेक्षता: अवधारणा, व्यवहार और चुनौतियाँ
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Abstract
भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा केवल धार्मिक सहिष्णुता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विविध धर्मों, विश्वासों और परंपराओं को समान सम्मान देने तथा राज्य को किसी एक धर्म विशेष के पक्षपात से मुक्त रखने की गारंटी भी देती है। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता को मूलभूत सिद्धांत के रूप में अपनाया गया है, जहाँ राज्य धर्म से दूरी बनाए रखता है, परंतु धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है। व्यवहारिक स्तर पर धर्मनिरपेक्षता भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला मानी जाती है, जो बहुलतावादी समाज में सामाजिक सौहार्द, राष्ट्रीय एकता और लोकतांत्रिक मूल्यों को सुरक्षित रखने का माध्यम है। फिर भी इसकी चुनौतियाँ गंभीर और बहुआयामी हैं। सांप्रदायिकता, धार्मिक ध्रुवीकरण, जातिगत असमानता, राजनीतिक दलों द्वारा धर्म आधारित वोट बैंक की राजनीति, और सोशल मीडिया पर बढ़ते धार्मिक उग्रवाद ने धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को कमजोर किया है। साथ ही, बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच अविश्वास, न्यायपालिका में बढ़ती संवेदनशीलता, तथा शिक्षा और मीडिया में पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण भी समस्याओं को और जटिल बनाते हैं। इन चुनौतियों के बावजूद, धर्मनिरपेक्षता भारत की लोकतांत्रिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है, जिसे केवल संवैधानिक सुरक्षा ही नहीं बल्कि समाज के सक्रिय सहयोग से भी संरक्षित किया जा सकता है। अतः धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को व्यवहार में उतारना और नागरिक चेतना को सुदृढ़ करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
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