भारतीय जाति व्यवस्था और स्वामी विवेकानन्द की विचारधारा
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Abstract
भारतीय सामाजिक व्यवस्था का आधार काफी हद तक यहाँ की जाति व्यवस्था को माना जाता है। हालांकि भारत में जाति व्यवस्थ आने से पहले सामाजिक व्यवस्था आ चुकी थी और भारत एक सभ्य समाज के रूप में स्थापित हो चुका था जिसकी राजनीतिक व्यवस्था भी काफी विकसित थी। प्राचीन वैदिक साहित्य में भारतीय सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख मिलता है लेकिन प्राचीन वैदिक समाज में जाति व्यवस्था दिखाई नहीं देती। अगर वेदों के साथ-साथ दूसरे प्राचीन साहित्य की बात की जाए तो उसमें भी जाति व्यवस्था का बहुत अधिक प्रभाव दिखाई नहीं देता। कुछेक प्राचीन ग्रंथों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर प्राचीन ग्रंथ किसी भी रूप में जाति व्यवस्था का समर्थन करते नजर नहीं आते लेकिन वर्ग व्यवस्था जरूर दिखाई देती है। इस प्राचीन भारतीय समाज की वर्गीय व्यवस्था की एक विशेषता रही कि किसी भी व्यक्ति को अपनीे योग्यतानुसार वर्ग बदलने का अधिकार था। प्राचीन भारतीय वैदिक समाज, रामायणकालीन समाज और महाभारतकालीन समाज में ऐसा देखा जाता है कि कोई भी व्यक्ति अपना वर्ग बदल सकता था। ऐसे कितने ही उदाहरण मिलते हैं जहाँ शूद्र वर्ग में जन्म लेने के बावजूद ब्राह्मण वर्ग में परिवर्तन करके बहुत से विद्वानों ने अपने को ब्राह्मण के रूप में स्थापित किया।
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